प्रकृति का अंत

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प्रकृति अब चली अंत को.....


अंत हो चला अब मनोहर प्रकृति का
अंत हो चला अब उस रमणीय प्रकृति का
नदियाँ भी अब चली अंत को
अंत हो गया है वन का.....

विलुप्त हो गयी है पशु प्रजाति
और कई  पक्षी जाती प्रदूषण का शिकार बन जाती
नदियों में फैक्ट्री का विषैला पानी...
जल्यजीव को शिकार बनाता

आज विज्ञान के युग में
जिंदा आदमी मुर्दा बन जाता
टेक्नोलॉजी ने दिया है बहुत कुछ
लेकिन बहुत कुछ खोया भी है

नहीं आ सकता नदियों पानी वापस
नहीं आ सकते विलुप्त जानवर
जो जीता कई सालों तक
आज जी रहा है वो साल भर

प्रकृति दिखाएगी अब अपना रूप
कहीं छाया नहीं होगी...चारों तरफ होगी धूप
कोई तड़पेगा पानी से ..और कोई कहेगा भूख
कोई नहीं कर सकता अब कुछ बैठेंगे अब सब चुप

कहीं भूकंप होंगे और कहीं होगी सुनामी
चलाएगी प्रकृति अब अपनी मनमानी

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